१- परजीवी जनित रोग
२- जीवाणु जनित रोग
३- विषाणु जनित रोग
४- कवक फंगस जनित रोग
1.परजीवी जनित रोग:
आंतरिक परजीवी मछली के आंतरिक अंगों जैसे शरीर गुहा रक्त नलिका आदि को संक्रमित करते हैं जबकि बाहरी परजीवी मछली के गलफड़ों, पंखों चर्म आदि को संक्रमित करते हैं
1-ट्राइकोडिनोसिस :
लक्षण: यह बीमारी ट्राइकोडीना नामक प्रोटोजोआ परजीवी से होती है जो मछली के गलफड़ों व शरीर के सतह पर रहता है इस रोग से संक्रमित मछली शिथिल व भार में कमी आ जाती है. गलफड़ों से अधिक श्लेष्म प्रभावित होने से स्वसन में कठिनाई होती है.
उपचार: निम्न रसायनों में संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट डुबो के रखने से रोग को ठीक किया जा सकता है 1.5% सामान्य नमक घोल कर 25 पीपीएम फर्मोलिन, 10 पी पी एम कॉपर सल्फेट.
2- माइक्रो एवं मिक्सो स्पोरिडिसिस:
लक्षण: यह रोग अंगुलिका अवस्था में ज्यादा होता है. यह कोशिकाओं में तंतुमय कृमिकोष बनाके रहते हैं तथा ऊतकों को भारी क्षति पहुंचाते हैं.
उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कोई ओषधि नहीं है. इसके उपचार के लिए या तो रोगग्रस्त मछली को बाहर निकल देते हैं. या मतस्य बीज संचयन के पूर्व चूना ब्लीचिंग पाउडर से पानी को रोग मुक्त करते हैं.
3- सफेद धब्बेदार रोग:
लक्षण : यह रोग इन्कयियोथीसिस प्रोटोजोआ द्वारा होता है. इसमें मछली की त्वचा, गलफड़ों एवं पंख पर सफेद छोटे छोटे धब्बे हो जाते हैं.
उपचार: मैला काइट ग्रीन ०.1 पी पी ऍम , 50 पी पी ऍम फर्मोलिन में १-२ मिनट तक मछली को डुबोते हैं.
2. जीवाणु जनित रोग:
1- कालमानेरिस रोग:
लक्षण: यह फ्लेक्सीबेक्टर कालमानेरिस नामक जीवाणु के संकम्रण से होता है, पहले शरीर के बाहरी सतह पर फिर गलफड़ों में घाव होने शुरू हो जाते हैं. फिर जीवाणु त्वचीय ऊतक में पहुंच कर घाव कर देते हैं.
उपचार: संक्रमित भाग में पोटेशियम परमेगनेट का लेप लगाया जाता है. 1 से 2 पी पी ऍम का कॉपर सल्फेट का खोल पोखरों में डालें.
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2- ड्रॉप्सी:
लक्षण: मछली जब हाइड्रोफिला जीवाणु के संपर्क में आती है तब यह रोग होता है. यह उन पोखरों में होता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध नहीं होता है. इससे मछली का धड़ उसके सिर के अनुपात में काफी छोटा हो जाता है. शल्क बहुत अधिक मात्रा में गिर जाते हैं व पेट में पानी भर जाता है.
उपचार: मछलियों को पर्याप्त भोजन देना
पानी की गुणवत्ता बनाये रखना
१०० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पानी में 15 दिन में चूना डालते रहना चाहिए.
3- बाइब्रियोसिस रोग:
लक्षण: यह रोग बिब्रिया प्रजाति के जीवाणुओं से होता है.
इसमें मछलियों को भोजन के प्रति अरुचि के साथ साथ रंग काला पड़ जाता है. मछली अचानक मरने भी लगती हैं. यह मछली की आंखों को अधिक प्रभावित करता है सूजन के कारण आंखें बाहर आ जाती हैं.
उपचार: ऑक्सीटेटरासाइक्लिन तथा सल्फोनामाइन को 8 से 12 ग्राम प्रति किलोग्राम भोजन के साथ मिला कर देना चाहिए.
3. कवक एवं फफूंद जनित रोग:
लक्षण: सेप्रोलिग्नियोसिस: यह रोग सेप्रोलिग्नियोसिस पैरालिसिका नामक फफूंद से होता है. जाल द्वारा मछली पकड़ने व परिवहन के दौरान मत्स्य बीज के घायल हो जाने से फफूंद घायल शरीर पर चिपक कर फैलने लगती है. त्वचा पर सफेद जालीदार सतह बनाता है. जबड़े फूल जाते हैं पेक्टरल वाका डॉल्फिन पेक्टोरल व काडल फिन के पास रक्त जमा हो जाता है. रोग ग्रस्त भाग पर रुई के समान गुच्छे उभर आते हैं.
उपचार: 3% नमक का घोल या 1 :1000 पोटाश का घोल पोटाश का घोल या 1 अनुपात 2 हजार कैलशियम सल्फेट का घोल मैं 5 मिनट तक डुबोने से विषाणु रोग समाप्त किया जा सकता है.
1 - स्पिजुस्टिक अल्सरेटिव सिंड्रोम:
गत 22 वर्षों से यह रोग भारत में महामारी के रूप में फैल रहा है. सर्वप्रथम यह रोग त्रिपुरा राज्य में 1983 में प्रविष्ट हुआ तथा वहां से संपूर्ण भारत में फैल गया यह रोग तल में रहने वाली सम्बल, सिंधी, बाम, सिंघाड़ कटरंग तथा स्थानीय छोटी मछलियों को प्रभावित करता है. कुछ ही समय में पालने वाली मछलियां कार्प, रोहू ,कतला, मिरगला मछलियां भी इस रोग की चपेट में आ जाती हैं.
ये भी पढ़े: अब किट से होगी पशु के गर्भ की जांचलक्षण: इस महामारी में प्रारंभ में मछली की त्वचा पर जगह-जगह खून के धब्बे उतरते हैं बाद में चोट के गहरे घाव में तब्दील हो जाते हैं. चरम अवस्था में हरे लाल धब्बे बढ़ते हुए पूरे शरीर पर यहां वहां गहरे अल्सर में परणित हो जाते हैं. पंख व पूंछ गल जाती हैं. अतः शीघ्र व्यापक पैमाने पर मछलियां मर कर किनारे पर दिखाई देती है.
बचाव के उपाय: वर्षा के बाद जल का पीएच देखकर या कम से कम 200 किलो चूने का उपयोग करना चाहिए. तालाब के किनारे यदि कृषि भूमि है तो तालाब की चारों ओर से बांध देना चाहिए ताकि कृषि भूमि का जल सीधे तलाब में प्रवेश न करें. शीत ऋतु के प्रारंभिक काल में ऑक्सीजन कम होने पर पंप ब्लोवर से पानी में ऑक्सीजन प्रवाहित करना चाहिए.
उपचार: अधिक रोग ग्रस्त मछली को तालाब से अलग कर देना चाहिए. चूने के उपयोग के साथ-साथ ब्लीचिंग पाउडर 1 पीपीएम अर्थात 10 किलो प्रति हेक्टेयर मीटर की दर से तालाब में डालना चाहिए.
आप अगर बिजनेस में रुचि लेते हैं, तो मछली पालन एक बढ़िया विकल्प है। आप खेती के साथ-साथ मछली पालन कर बढ़िया आय प्राप्त कर सकते हैं। बस, थोड़ी मेहनत बढ़ जाएगी, मछली पालन के थोड़े गुर सीखने होंगे और थोड़ी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी बनानी पड़ेगी।
मछली पालन अब एक व्यवसाय बन चुका है, लोग इस काम को कर रहे हैं। जहां पोखरे-तालाब हैं, वहां तो यह काम हो ही रहा है, जहां नहीं हैं, वहां लोग तालाब-पोखरे खुदवा रहे हैं। यह गांव का सीवान हो सकता है, बीचों-बीच गांव में भी हो सकता है, शहर के किसी किनारे पर हो सकता है, माने, कहीं भी आप मछली पालन कर सकते हैं।
जरूरी क्या है
सबसे जरूरी है, एक तालाब या पोखरे का होना। मछली जल में ही रहती है तो, मछली को आप प्लास्टिक के पौंड में नहीं पाल सकते। उसके लिए आपको तालाब खुदवाना ही पड़ेगा। तालाब अगर 100 फुट गुने 100 फुट का है तो बेहतर, कम-ज्यादा भी चल सकता है।
किन मछलियों का पालन करें
अगर आप शॉर्ट टर्म के लिए मछली पालन करना चाहते हैं, तो आपके लिए रोहू, कतला, भाकुर, सिल्वर ग्रास, नैना जैसी प्रजातियां ठीक रहेंगी। ये वो मछलियां हैं, जो किसी भी वातावरण में पल जाती हैं, जी जाती हैं। अगर आप लॉंग टर्म के लिए मछली पालन करना चाहते हैं, तो आपको विदेशी मछलियों की तरफ रुख करना पड़ सकता है। उसके लिए आपके गांव या शहर की जयवायु अनुकूल होगी या नहीं, यह मतस्य विशेषज्ञ ही आपको बता सकेंगे।
सबसे पहले आप पता करें कि बेस्ट क्वालिटी का जीरा (मछली का बीज) कहां मिलता है। राष्ट्रीय स्तर पर कई संस्थान हैं, जो मछली का जीरा तैयार करते हैं, इनमें एक संस्थान आंध्र प्रदेश में भी है। आपको जब तसल्ली हो जाए कि रेट और क्वालिटी के हिसाब से इस संस्थान या मार्केटिंग कंपनी का जीरा उत्तम है, तो उससे संपर्क करें। नमूने के एक एक सीमित संख्या में उसे मंगवा लें और मतस्य अधिकारी को जरूर दिखाएं, उनकी रजामंदी के बाद ही उसे इस्तेमाल करें।
जीरा डालना और चारे की व्यवस्था
मतस्य अधिकारी की संस्तुति के बाद आप तालाब में जीरा डाल दें, जीरा डालने के साथ ही आपको उनके लिए प्रचुर मात्रा में भोजन की व्यवस्था करनी होगी। कई लोग आटा भी खिला देते हैं, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आप मछली को चारे में सरसों की खली और चावल के टुकड़े ही खिलाएं, बाकी मछलियां अपना भोजन तालाब से खुद ही ले लेती हैं।
साफ-सफाई
जिस तालाब में आप जीरा डाल रहे हैं, उसकी समय-समय पर साफ-सफाई बहुत जरूरी है, यह सफाई दो तरीके से करें। पहला, हर मछली पर नजर रखें, जो मछली मर जाए, उसे तुरंत बाहर निकाल फेंके अन्यथा वह तालाब की शेष मछलियों को भी प्रभावित कर देंगी। दूसरा, जब आपको तालाब के पानी का रंग हल्का धूसर या फिर हरा दिखने लगे, तब समस्त मछलियों को निकाल कर पूरा तालाब खाली कर दें और उसमें नया पानी डालें, ̣फिर मछलियों को उसमें डालें। पानी का रंग बदलने का अर्थ यह हुआ कि अब उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई, इससे मछलियां मर भी सकती हैं।
मछली तैयार होने में वक्त
जिस दिन आप मछली को तालाब या पोखरे में डाल कर भोजन की व्यवस्था करते हैं, उसके 30 दिनों के भीतर एक से सवा किलो वजन की मछली तैयार हो जाती है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है, कि आप किस वजन की मछलियां चाहते हैं। आप जिस वजन की मछलियां चाहते हैं, उसके अनुरूप ही आपको वेट करना चाहिए।
मोदी सरकार ने मछली पालन को एक कृषि से संबंधित व्यवसाय मान लिया है और केसीसी(किसान क्रेडिट कार्ड) में इसके लिए व्यवस्था की गई है। अर्थात, आप केसीसी का इस्तेमाल मछली पालन के लिए भी कर सकते हैं। आप एक बार में 1 लाख 60 हजार रुपये मछली पालन के लिए लोन ले सकते हैं।
बिक्री
मछली तो तैयार हो गई, अब इसे बेचें कहां, यह एक सवाल होता है। वेल, मछली बेचने के लिए आपको बस थोड़ा सा अपने मोबाइल की तरफ जाना होगा। डिलिशियस और बिग बास्केट जैसी कई कंपनियां हैं, जो सीधे आपके घर या तालाब से जिंदा मछली उठा कर ले जाएंगी और आपके खाते में 100 प्रतिशत पेमेंट ऑन द स्पॉट कर देंगी। तो, यह काम आप मोबाइल से कर सकते हैं, दूसरा तरीका यह है कि आप लोकल मार्केट में किसी मछली डीलर को पकड़ें। वह भी आपकी मछलियां तुरंत ले लेगा।
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अब मछली पालन के लिए लोन लेने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं, क्योंकि यहां पर कृषि की तरह ही बिना ब्याज के लोन देने का प्रावधान किया गया है। ऐसे में मछली पालन के व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही किसानों की आर्थिक समस्या का हल भी मिलेगा।
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आजकल हमें यह भी देखने को मिल रहा है, कि सामान्य कृषि में लोगों का रुझान भी कम हो रहा है और साथ ही उसमें आमदनी भी कम होती जा रही है। बारिश के कम ज्यादा होने का मौसम के जरा सा इधर-उधर होने पर कृषि में किसानों की पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती हैं। जिससे उन्हें काफी तंगी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में इन सब चीजों को देखते हुए लोगों का रुझान मछली पालन की ओर ज्यादा बढ़ा है।
किस तरह से होगा लोन की दर में बदलाव
पहले की बात करें तो किसानों को 100000 के मूल्य पर 1% और 300000 तक के मूल्य पर 3% ब्याज की दर के साथ लोन दिया जाता था। लेकिन अब जबसे मत्स्य पालन को कृषि की तरह ही दर्जा मिल गया है, तो सरकारी विभाग से यह लोन बिना किसी ब्याज के किसानों को दिया जाएगा। साथ ही यहां पर भी किसान कृषि क्रेडिट कार्ड बनवा सकते हैं और उसका फायदा उठा सकते हैं।
मत्स्य पालकों को दी जाने वाली अन्य सुविधाएं और लाभ
वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई बांधों एवं जलाशयों से नहर के माध्यम से जलापूर्ति की आवश्यकता पड़ती थी, जिसके लिए मत्स्य कृषकों एवं मछुआरों को प्रति 10 हजार घन फीट पानी के बदले 4 रुपए का शुल्क अदा करना पड़ता था, जो अब फ्री में मिलेगा।
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मत्स्य पालक कृषकों एवं मछुआरों को प्रति यूनिट 4.40 रुपए की दर से विद्युत शुल्क भी अदा नहीं करना होगा।
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राज्य सरकार मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए अनुदान (सब्सिडी) उपलब्ध कराती है।
मत्स्य पालकों को 5 लाख रुपए तक का बीमा दिया जाता है।
मछुआ सहकारी समितियों को मत्स्य पालन के लिए जाल, मत्स्य बीज एवं आहार के लिए 3 सालों में 3 लाख रुपए तक की सहायता दी जाती है।
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यदि आप इस व्यापार को करके बेहतर मुनाफा के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले झींगा का उत्पादन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको प्रशिक्षण लेना आवश्यक है। नई तकनीक के साथ आपको आवश्यक उपकरण जिससे झींगा पालन करने मे आसानी हो उसे जानना और समझना चाहिए। इस व्यापार में भारी निर्यात क्षमता है, विशेष रूप से घरेलू बाजार में जहां ताजा झींगा की तुलना में जमी हुई झींगा बेचना अधिक लाभदायक है।
झींगा की खेती शुरू करने से पहले इन बातों का रखे विशेष ध्यान:
झींगा की कितनी विभिन्न प्रजातियाँ हैं? किस प्रजाति के झींगा का पालन करने से बेहतर मुनाफा अर्जित करना आसान होगा?
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झींगा पालन करने से पहले आपको स्थानीय झींगा बाजार की प्रतिस्पर्धा और मांग के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी होगी। नजदीकी कृषि अनुसंधान कार्यालय से जानकारी प्राप्त करनी होगी और पता करना होगा कि झींगा पालन के लिए कौन से लाइसेंस की आवश्यकता होती है। एक व्यावसायिक झींगा फार्म चलाने के लिए, अधिकांश राज्यों को आपको एक्वाकल्चर परमिट खरीदने की आवश्यकता होती है। अपने झींगा फार्म को स्थापित करने के लिए आपके पास कई प्रकार के विकल्प हैं।
तालाब, विशाल टैंक, स्विमिंग पूल, और कोई भी अन्य जल भंडारण सुविधाएं शामिल हैं। झींगा मछली पालन की एक एकड़ जमीन पर खोदे गए तालाब से करीब 4 हजार किलोग्राम झींगा पैदा किया जा सकता है। जिनका खुले बाजार में मूल्य 350 से 400 रूपये प्रतिकिलों तक होता है, जो मछलियों के मूल्य से अधिक है। एक एकड़ भूमि में झींगा मछली पालन से एक बार में 5 लाख तक की शुद्ध आय हो सकती है। झींगा मछली औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें काफी मात्रा में विटामिन और खनिज लवण पाए जाते हैं। झींगा मछली विटामिन डी से भरपूर होने के कारण इसका उपयोग त्वचा संबंधी रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है।
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झींगा पालन मे रुचि रखने वाले किसान अपने नजदीकी जिले के मछली पालन, पशुपालन और डेयरी विकास मंत्रालय के कार्यालय में संपर्क करके और भी अधिक जानकारी प्राप्त करके इस व्यवसाय को शुरू करके बेहतर मुनाफा अर्जित कर सकते है।
शोधकर्ताओं ने देश के पूम्पुहार में एक पोर्टेबल मछली हैचरी में कारप बीज का उत्पादन किया, जिसके लिए उन्होंने कारप मछलियों के करीब 10 हजार बीज कुल 15 किसानों को दिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा मछलियों का उत्पादन किया जा सके और उनकी प्रजातियों में सुधार हो.
ज्यादा लागत और बढ़ती मौत चुनौती
एक्सपर्ट्स के मुताबिक मछली पालकों के सामने कई चुनौतियां हैं. जिनमें से हैचरी से मछली के बीज काफी महंगे होते हैं. इसके अलावा जो भी मछलियां खरीदी जाती हैं, उनकी मौत भी ज्यादा होती है. इस समस्या को दूर करने के लिए एक मोबाइल हैचरी शुरू की है. जो टेम्प्रेचर, प्रेशर और ऑक्सीजन के लेवल को मेंटेन करने के साथ रोशनी समेत कई सुविधा देता है.
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समस्या होगी हल
एमएसएसआरएफ और आईसीएआर-एनबीएफजीआर ने मिलाकर कोशिश करनी शुरू कर दी है. इसका मुख्य उद्देश्य तमिलनाडु जे माईलादुथुराई नाम के जिले में मछली पालक किसनों के सामने आने वाली हर तरह की चुनौतियों को दूर करना है.